हर व्रत की तरह महाशिवरात्रि व्रत की महिमा का बखान करने वाली एक खास कथा है। माना जाता है कि महज इस कथा को पढ़ने या श्रवण करने से इस महाशिवरात्रि के व्रत का पुण्य मिलता है। यहां पढ़ें महाशिवरात्रि व्रत की पौराणिक कहानी।
मुख्य बातें
इस साल महाशिवरात्रि 01 मार्च को मनाई जा रही है ।
महाशिवरात्रि का पर्व हर वर्ष फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है।
यहां पढ़ें महाशिवरात्रि व्रत की पौराणिक कहानी।
महाशिवरात्रि का पर्व हर वर्ष फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। ये व्रत माता पार्वती और भगवान शिव को समर्पित है। कहा जाता है कि महाशिवरात्रि पर भगवान शिव ने अपनी तीसरी आंख खोली थी और इस संसार को नष्ट कर दिया था। वहीं कुछ लोग यह भी कहते हैं कि इस दिन माता पार्वती और भगवान शिव का विवाह हुआ था। महाशिवरात्रि का पर्व सनातन धर्म में बहुत विशेष माना जाता है। मान्यता है कि महाशिवरात्रि पर भगवान शिव की आराधना करने से सभी कष्ट दूर हो जाते हैं और भय पर विजय प्राप्त होता है। मान्यताओं के अनुसार, महाशिवरात्रि पर पूजा करके कथा अवश्य सुननी चाहिए।
महाशिवरात्रि व्रत कथा हिंदी में, महाशिवरात्रि व्रत की पौराणिक कहानी
ज्ञाताओं के मुताबिक, चित्रभानु नाम के शिकारी की यह कथा शिव पुराण में मिलती है। बहुत समय पहले चित्रभानु अपने परिवार का पेट भरने के लिए शिकार करता था। गरीब होने के चलते वह साहूकार से कर्ज लिया करता था जिसको वह समय पर चुका नहीं पाता था। अपना कर्ज वसूलने के लिए एक दिन साहूकार ने चित्रभानु को कैद कर लिया जिसके वजह से चित्रभानु को भूखा प्यासा रहना पड़ा था।
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इसी बीच चित्रभानु ने भगवान शिव की आराधना की। चित्रभानु को पैसे व्यवस्थित करने के लिए साहूकार ने शाम को उसे छोड़ दिया, जिसके बाद चित्रभानु जंगल में दर-दर शिकार ढूंढने के लिए भटकता रहा। भटकते-भटकते शाम से रात हो गई लेकिन उसे एक भी शिकार नहीं मिला। पास में एक बेल का पेड़ था जिस पर वह चढ़ गया, उस बेल के पेड़ के नीचे एक शिवलिंग मौजूद था।
चित्रभानु ने शिवलिंग पर अर्पित किया बेलपत्र:
चित्रभानु के वजह से बेलपत्र टूट-टूट कर शिवलिंग पर गिरती रहीं। पूरे दिन भूखा-प्यासा रहकर रात में अनजाने में ही सही लेकिन चित्रभानु ने शिवलिंग पर बेलपत्र अर्पित कर दिया था। रात के समय तलाब के पास एक गर्भवती हिरणी आई। चित्रभानु उस गर्भवती हिरणी को मारने ही वाला था कि तभी गर्भवती हिरनी ने उसे कहा कि वह जल्द ही अपने बच्चे को जन्म देने वाली है। मैं अपने बच्चे को जन्म देकर आपके पास वापस आऊंगी तब आप मेरा शिकार कर लीजिएगा। गर्भवती हिरणी की बात सुनकर चित्रभानु ने उसे जाने दिया इस तरह महाशिवरात्रि का प्रथम प्रहर भी बीत गया।
समाप्त हुई दूसरे प्रहर की पूजा:
चित्रभानु शिकार की तलाश कर ही रहा था कि तभी वहां से एक दूसरी हिरणी आई। हिरणी को देखते ही चित्रभानु शिकार के लिए तैयार हो गया था तभी हिरणी ने उसे कहा कि वह अभी ऋतु से मुक्त होकर आई है और अपने पति की खोज कर रही है। हिरणी ने उससे वादा किया कि वह अपने पति से मिलकर शिकार के पास वापस लौटेगी। चित्रभानु ने उसे जाने दिया इस तरह आखरी प्रहर भी बीत गया। चित्रभानु के वजह से वापस बेलपत्र शिवलिंग पर गिरे जिसके वजह से दूसरे प्रहर की पूजा भी समाप्त हो गई।
तीसरी हिरणी को भी कर दिया मुक्त:
कुछ समय बाद वहां से तीसरी हिरणी अपने बच्चों के साथ आई, चित्रभानु फिर से हिरणी के शिकार के लिए तैयार हो गया। हिरणी ने कहा कि वह इन बच्चों को अपने पिता के पास छोड़ कर वापस आएगी। हिरणी की बात सुनकर चित्रभानु ने उसे भी छोड़ दिया। इस तरह चित्रभानु ने पूरा दिन उपवास रखा और रात्रि जागरण किया।
चौथे हिरण को दिया जीवनदान:
चित्रभानु अपने कर्ज और परिवार की चिंता में डूबा हुआ था तभी वहां एक हिरण आया। हिरण ने चित्रभानु को देखते हुए कहा कि अगर तुमने तीन हिरणी और उनके बच्चों को मार दिया है तभी तुम मुझे मार सकते हो। और अगर तुमने उनको छोड़ दिया है तो मुझे भी छोड़ दो मैं अपने पूरे परिवार के साथ यहां वापस आ जाऊंगा।
चित्रभानु ने हिरण तो घटित घटना बताई तब हिरण ने जवाब दिया कि वह तीन हिरणियां उसकी पत्नी थीं। अगर तुमने मुझे मार दिया तो वह तीन हिरणी अपना वादा पूरा नहीं कर पाएंगी। मेरा विश्वास करो मैं अपने पूरे परिवार के साथ यहां जल्दी वापस आऊंगा।
चित्रभानु को हुई मोक्ष और शिवलोक की प्राप्ति:
हिरण की बात सुनकर चित्रभानु ने उसे जाने दिया। इस तरह चित्रभानु का ह्रदय परिवर्तन हो गया और उसका मन पवित्र हो गया। रात भर चित्रभानु ने भगवान शिव की आराधना की थी जिसके वजह से भगवान शिव उससे प्रसन्न हो गए थे। कुछ देर बाद हिरण अपने पूरे परिवार के साथ चित्रभानु के पास पहुंच गया था।
हिरण और उसके परिवार को देखकर चित्रभानु बहुत खुश हुआ और उसने हिरण के पूरे परिवार को जीवनदान देने का वचन लिया। इस तरह चित्रभानु को मोक्ष की प्राप्ति हुई थी और मरने के बाद उसे शिवलोक में जगह मिली थी।