वेब सीरीज़ रिव्यू: माई!

 नेटफ्लिक्स पर एक नई सीरीज आई है, ‘माई’. जहां साक्षी तंवर ने वही किया है, जो ‘मातृ’ में रवीना टंडन ने, और ‘मॉम’ में श्रीदेवी ने किया था. साक्षी ने शील नाम का कैरेक्टर प्ले किया है, जो अपने पति और बेटी के साथ रहती है. ये कहानी सेट है लखनऊ में. वो सुंदर लखनऊ नहीं, जिस पर शेर और कविताएं लिखी जाती रही हैं. इस लखनऊ को देखकर डल सी फीलिंग आती है. ऐसे ब्राउन और मटमैले कलर्स में शूट किया गया है शहर को. शील की बेटी सुप्रिया का रोल वामिका गब्बी ने निभाया है, जो सुन सकती है पर बोल नहीं सकती. अपना घर संभालने के साथ-साथ शील एक वृद्धाश्रम में भी काम करती है. उसकी कहानी का टर्निंग पॉइंट तब आता है, जब एक दिन उसकी बेटी को एक ट्रकवाला मारकर चला जाता है. पहली नज़र में एक्सीडेंट लगने वाली ये घटना शील को चुभती है.





वो बस इस एक्सीडेंट कम मर्डर के पीछे की हकीकत जानने निकल पड़ती है. मतलब, लिटरली घर से निकल पड़ती है. जानना चाहती है कि उसकी बेटी को किसने मारा, क्यों मारा. अपनी जर्नी में शील को सिर्फ इन्हीं सवालों के जवाब नहीं मिलते, बल्कि कुछ और सवाल उससे आंख मिलाते हैं. जैसे क्या वो वाकई में एक अच्छी मां थी, और जिस बेटी के लिए दुनिया से लड़ने निकली है, सही मायने में उस बेटी को कितना जानती थी?


शील के लिए इस दुनिया में कुछ मायने नहीं रखता, सिवाय इस बात के कि उसकी बेटी क्यों मारी गई. इसी जुनून को वो अपना ड्राइविंग फोर्स बनाती है और अपनी मिडिल क्लास दुनिया से दूर होने लगती है. हो सकता है किसी को उसका ये अचानक से आया ट्रांज़िशन खटके, मगर इंसान को इंसान से अलग करने वाले पागलपन को इसकी वजह माना जा सकता है. ये सीरीज पूरी तरह साक्षी और उनके किरदार शील की है. बाकी सभी यहां सेकंडरी हैं.


शील बस इस एक्सीडेंट कम मर्डर के पीछे की हकीकत जानने निकलती है, लेकिन इस खोज में उसे और कई जवाब मिलते हैं

नसीरुद्दीन शाह ने एक बार कहा था कि हम अक्सर रोने और चिल्लाने को ही एक्टिंग समझते हैं. यानी लाउड होना ही हमारे लिए एक्टिंग की परिभाषा है. ‘माई’ में साक्षी के हिस्से ऐसे कई सीन आए, जहां उनके कैरेक्टर का इमोशनल ब्रेकडाउन होता है. ऐसे सभी सीन में साक्षी को देखकर आप अनकम्फर्टेबल महसूस करते हैं, उनके किरदार की हालत देखकर मन में चुभन-सी गड़ती है. लेकिन सिर्फ उनके इमोशनल सीन ही शो के हाइलाइट नहीं हैं. पूरी सीरीज़ के दौरान एक मोमेंट पर भी वो अपना कैरेक्टर ब्रेक करते हुए नहीं दिखती. जैसे हमें शुरू में बताया जाता है कि शील अपने भाईसाहब और भाभी के सामने बस हां में जवाब देती है. आगे एक सीन है, जहां वो अपने रिवेंज मिशन पर है. तभी अचानक से भाईसाहब की एंट्री होती है. वो पूछते हैं कि मैं ड्रॉप कर देता हूं तुम्हें. शील बिना एक सेकंड गंवाए, हां बोलकर उनकी गाड़ी में बैठ जाती है.


जिस बदले के लिए वो इतना तड़प रही थी, उसके बारे में न सोचते हुए भाईसाहब के सामने वैसे ही पेश आती है, जैसी वो हमेशा से रही है.


सीरीज़ की सबसे अच्छी और शायद बुरी बात सिर्फ यही है कि इसका पूरा फोकस सिर्फ शील पर है. शील के अलावा हम किसी भी कैरेक्टर को इतना नहीं जान पाते कि उन पर कोई एक पन्ना लिखने को कहे तो लिख पाएं. शो ने भले ही शील के बदले की स्टोरीलाइन के साथ-साथ और भी सब प्लॉट्स टैप करने की कोशिश की, लेकिन उनमें उतर नहीं पाए. सुप्रिया की मौत के बाद उसके पिता के अकेलेपन को दिखाने की कोशिश की, सुप्रिया के पास्ट को टच करने की कोशिश की, लेकिन फिर भी ये हिस्से अपने आप में पूरे नहीं लगते.


‘माई’ में साक्षी के हिस्से ऐसे कई सीन आए, जहां उनके कैरेक्टर का इमोशनल ब्रेकडाउन होता है. ऐसे सभी सीन में साक्षी को देखकर आप अनकम्फर्टेबल महसूस करते हैं, लेकिन सिर्फ इमोशनल सीन ही शो के हाइलाइट नहीं हैं.

इस कहानी को शील की कहानी बताने की एक और वजह है. एक सेट रूटीन में बंधी औरत अचानक से दिन-दिन भर घर से बाहर रहने लगती है और किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता. कोई सवाल नहीं उठाता कि तुम्हारी लाइफ में आखिर चल क्या रहा है. ये खटकता है. साथ ही ये बात भी खटकती है कि शील इतना सब कुछ मैनेज कैसे कर पाती है. एक सीन में वो इल्लीगल काम करने वालों के अड्डे में घुसने की कोशिश कर रही है और अगले ही सीन में फैमिली से मिलने हॉस्पिटल पहुंच जाती है.


पिछले कुछ समय से क्राइम ड्रामा में डील करने वाले इंडियन शोज़ एक सेट पैटर्न पर दौड़ रहे हैं. कुछ एलिमेंट्स होंगे जो बिना बात रखे जाएंगे, यहां भी ऐसा केस है. जैसे एक सेम सेक्स रिलेशनशिप वाला कपल, हाथ-पैर काटने वाला खून खराबा और बड़े लेवल पर शूटआउट. ‘माई’ में कुछ खामियां ज़रूर हैं, लेकिन फिर भी इसको साक्षी तंवर के बेस्ट कामों में गिना जाना चाहिए. दिक्कत बस यही हो गई कि उनके किरदार के अलावा बाकी किसी को उतना वेटेज नहीं मिल पाता. बाकी ‘माई’ को आप नेटफ्लिक्स पर देख सकते हैं.

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